चखी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
या सुन ही लिया है सिर्फ़ नाम-ए-तौहीद
है कुफ़्र-ए-हक़ीक़ी का नतीजा ईमाँ
तर्क-ए-तौहीद है मक़ाम-ए-तौहीद
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करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
दाल की फ़रियाद
पुर-शोर उल्फ़त की निदा है अब भी
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
पानी में है आग का लगाना दुश्वार
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है