काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
खो दिया झूटे ने अपना ए'तिबार
बात झूटी जो ज़बाँ पर लाएगा
सच भी इस का झूट समझा जाएगा
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गर्मी का मौसम
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़
जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया
हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र
मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर
पन चक्की