अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र
तू एक को दो देख रहा है नाचार
बोला कि अगर ऐब ये होता मुझ में
दो चाँद जो हैं साफ़ नज़र आते चार
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इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे
नसीहत
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
एक वक़्त में एक काम
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो