तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
आज़ादी-ओ-बे-तअल्लुक़ी है यक-लख़्त
दुनिया है न दीन है न दोज़ख़ न बहिश्त
तकिया न सराए है न चश्मा न दरख़्त
Ahmad Faraz
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है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
मुलम्मा की अँगूठी
बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
एक पौदा और घास
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई