साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
शम्अ' ओ गुल ओ अंदलीब ओ परवाना क्या
नेक-ओ-बद ओ ख़ानक़ाह ओ मय-ख़ाना क्या
है राह-ए-यगानगी में बेगाना क्या
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कहते हैं सभी मुसदाम अल्लाह अल्लाह
मुलम्मा की अँगूठी
दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
जिस दर्जा हो मुश्किलात की तुग़्यानी
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ