क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
पसमाँदा है अब तो फिर बढ़ेगी क्यूँकर
बच्चों के लिए नहीं है स्कूल की फ़ीस
ये बैल कहो मंढे चढ़ेगी क्यूँकर
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जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
दाल की फ़रियाद
बरसात
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़
हक़्क़ा कि बुलंद है मक़ाम-ए-अकबर
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र