ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
हम को भी अदा-ए-तहनियत है मंज़ूर
इस ईद-ए-सईद की ख़ुशी में हज़रत
क़ौमी बच्चों को याद रखिएगा ज़रूर
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अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ़-ए-अहवाल
दाल की फ़रियाद