दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ़-ए-अहवाल
कुछ रंज न राहत न मसर्रत न मलाल
क़ुर्बत है न बोद है न फ़ुर्क़त न विसाल
ये भी है ख़याल और वो भी है ख़याल
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
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Allama Iqbal
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सच कहो
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
होती नहीं फ़िक्र से कोई अफ़्ज़ाइश
अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
एक वक़्त में एक काम
हर ख़्वाहिश-ओ-अर्ज़-ओ-इल्तिजा से तौबा
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर