अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
गुम-गश्तगी और ख़ुद-फ़रोशी भी ग़लत
कुछ कहिए अगर तो गुफ़्तुगू है बेजा
चुप रहिए अगर तो है ख़मोशी भी ग़लत
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
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था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
अल-हक़ कि नहीं है ग़ैर हरगिज़ मौजूद
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
मजमूआ-ए-ख़ार-ओ-गुल है ज़ेब-ए-गुलज़ार
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है