वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
वो सर्फ़ की इस्तिलाह में है काफ़िर
की है तहक़ीक़ सरफ़ियान-ए-हक़ ने
हाज़िर ग़ाएब है और ग़ाएब हाज़िर
Gulzar
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इंकार न इक़रार न तस्दीक़ न ईजाब
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया
जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
हवा और सूरज का मुक़ाबला
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश