मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
वो गुल है दलील-ए-रंग-ओ-बू से बाहर
अंदर बाहर का सब तअय्युन है ग़लत
मतलब है कलाम-ओ-गुफ़्तुगू से बाहर
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था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
हवा और सूरज का मुक़ाबला
इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे
जिस दर्जा हो मुश्किलात की तुग़्यानी
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
एक पौदा और घास
कहते हैं सभी मुसदाम अल्लाह अल्लाह
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
एक वक़्त में एक काम
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
हमारी गाय
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश