इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हमारे
मैदान-ए-तलब में हाथ बढ़ कर मारे
जो इल्म-ओ-हुनर में ले गए हैं बाज़ी
हर काम में हैं उन्हीं के वारे-न्यारे
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
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Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
गर्मी का मौसम
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
जिस दर्जा हो मुश्किलात की तुग़्यानी
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
हर ख़्वाहिश-ओ-अर्ज़-ओ-इल्तिजा से तौबा
हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल
चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र
शैतान करता है कब किसी को गुमराह
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम