शैतान करता है कब किसी को गुमराह
इस राज़ से है ख़ुदा-ए-ग़ालिब आगाह
है काम किसी का और किसी पर इल्ज़ाम
ला-हौल-वला-क़ुव्वता इल्ला-बिल्लाह
Wasi Shah
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इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
दाल की फ़रियाद
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
दीन और दुनिया का तफ़रक़ा है मोहमल
पन चक्की
मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
अहवाल से कहा किसी ने ऐ नेक-शिआ'र