जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
बस्ती में हर एक शख़्स दिल-शाद रहा
जब रश्क-ओ-हसद ने फूट इन में डाली
दोनों में से एक भी न आबाद रहा
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Parveen Shakir
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Gulzar
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Rahat Indori
Javed Akhtar
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है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर तारी है
गर नेक दिली से कुछ भलाई की है
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
छोटे काम का बड़ा नतीजा
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से