बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
शोख़ी भी है इस में अय्यारी भी
छुप छुप के है ताक-झाँक अपनी करता
इस से कोई सीख जाए मक्कारी भी
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है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
एक पौदा और घास
पन चक्की
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
दीन और दुनिया का तफ़रक़ा है मोहमल
हमारी गाय
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार