पुर-शोर उल्फ़त की निदा है अब भी
जो थी वही आन और अदा है अब भी
होती नहीं सुन्नत-ए-इलाही तब्दील
जिस शान में है वही ख़ुदा है अब भी
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Gulzar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(857) Peoples Rate This
देखा तो कहीं नज़र न आया हरगिज़
जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया
कछवा और ख़रगोश
दीन और दुनिया का तफ़रक़ा है मोहमल
हवा और सूरज का मुक़ाबला
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर