पानी में है आग का लगाना दुश्वार
बहते दरिया को फेर लाना दुश्वार
दुश्वार सही मगर न उतना जितना
बिगड़ी हुई क़ौम को बनाना दुश्वार
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चक्खी भी है तू ने दुर्द-ए-जाम-ए-तौहीद
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
हमारी गाय
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
दाल की फ़रियाद
ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
एक वक़्त में एक काम
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
इसराफ़ से एहतिराज़ अगर फ़रमाते
काफ़िर को है बंदगी बुतों की ग़म-ख़्वार