कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
मख़्लूक़ को है अदम का रस्ता दरपेश
मख़्लूक़ भला अदम से निकली कब थी
मौजूद तो है वही जो कम हो ने बेश
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मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है
क़ौस-ए-क़ुज़ह
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
अल-हक़ कि नहीं है ग़ैर हरगिज़ मौजूद
कहते हैं सभी मुसदाम अल्लाह अल्लाह
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
अहमद का मक़ाम है मक़ाम-ए-महमूद
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
पन चक्की
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से