दुनिया को न तू क़िबला-ए-हाजात समझ
जुज़ ज़िक्र-ए-ख़ुदा सब को ख़ुराफ़ात समझ
इक लम्हा किसी मर्द-ए-ख़ुदा की सोहबत
आ जाए मयस्सर तो बड़ी बात समझ
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
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अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
अस्लाफ़ का हिस्सा था अगर नाम-ओ-नुमूद
क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
अहमद का मक़ाम है मक़ाम-ए-महमूद
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
कहते हैं सभी मुसदाम अल्लाह अल्लाह
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
अपने ही दिल अपनों का दुखाते हैं बहुत