आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
बे-सूद यक़ीं है और बे-हूदा गुमाँ
खुलता नहीं उक़्दा खोलने से कोई
बनती नहीं बात कुछ बनाए से यहाँ
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आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
चिड़िया के बच्चे
हमारी गाय
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल