जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर तारी है
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
अक्सर ने है आख़िरत की खेती बोई
ये मसअला-ए-दक़ीक़ सुनिए हम से
पन चक्की
दुनिया के लिए हैं सब हमारे धंदे
जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
मुलम्मा की अँगूठी
कहते हैं सभी मुसदाम अल्लाह अल्लाह
ये क़ौल किसी बुज़ुर्ग का सच्चा है