इक आलम-ए-ख़्वाब ख़ल्क़ पर तारी है
ये ख़्वाब में कारख़ाना सब जारी है
ये ख़्वाब नहीं यही समझना है ख़्वाब
गर ख़्वाब का आलम है तो बेदारी है
Jaun Eliya
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है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
मुलम्मा की अँगूठी
थोड़ा थोड़ा मिल कर बहुत हो जाता है
दाल की फ़रियाद
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़
बंदा हूँ तो इक ख़ुदा बनाऊँ अपना
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बार
सच कहो
इंसाँ को चाहिए न हिम्मत हारे