लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़
सब करते हैं दंदान-ए-हवस उन पर तेज़
चिड़ते हैं मगर उलूम-ए-अंग्रेज़ी से
गुड़ खाते हैं और गुलगुलों से परहेज़
Ahmad Faraz
Gulzar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
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ईद-ए-क़ुर्बां है आज ऐ अहल-ए-हमम
गर जौर-ओ-जफ़ा करे तो इनआ'म समझ
जिस दर्जा हो मुश्किलात की तुग़्यानी
हक़ है तो कहाँ है फिर मजाल-ए-बातिल
मकशूफ़ हुआ कि दीद हैरानी है
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
गर्मी का मौसम
हक़्क़ा कि बुलंद है मक़ाम-ए-अकबर
पन चक्की
शैतान करता है कब किसी को गुमराह