ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
क्या चीज़ तलब है और तमन्ना क्या है
है कम-नज़री से इश्तियाक़-ए-दीदार
जो कुछ है नज़र में ये तमाशा क्या है
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फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
जिस दर्जा हो मुश्किलात की तुग़्यानी
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया
ऊँट
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
मक़्सूद है क़ैद-ए-जुस्तुजू से बाहर
साक़ी ओ शराब ओ जाम ओ पैमाना क्या