ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़स को अपने पहचान
इंसान यक़ीन है और अल्लाह गुमान
मेरी बैअत के वास्ते हाथ बढ़ा
पढ़ कलमा-ए-ला-इलाहा इल्ला-इंसान
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नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
आज़ादि-ए-फ़िक्र ओ दर्स-ए-हिकमत है गुनाह
दिल की जानिब रुजूअ होता हूँ मैं
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
औरों को बताऊँ क्या मैं घातें अपनी
जीना है तो जीने की मोहब्बत में मरो
वो आएँ तो होगी तमन्नाओं की ईद
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है
हर इल्म ओ यक़ीं है इक गुमाँ ऐ साक़ी
बरसात है दिल डस रहा है पानी
बे-नग़्मा है ऐ 'जोश' हमारा दरबार
हर रंग में इबलीस सज़ा देता है