'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किए हुए
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3263) Peoples Rate This
शब कि वो मजलिस-फ़रोज़-ए-ख़ल्वत-ए-नामूस था
तंगी-ए-दिल का गिला क्या ये वो काफ़िर-दिल है
है गै़ब-ए-ग़ैब जिस को समझते हैं हम शुहूद
तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जम्बानी
कोई उम्मीद बर नहीं आती
रश्क कहता है कि उस का ग़ैर से इख़्लास हैफ़
ताअत में ता रहे न मय-ओ-अँगबीं की लाग
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
क्या ख़ूब तुम ने ग़ैर को बोसा नहीं दिया