'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1915) Peoples Rate This
दे मुझ को शिकायत की इजाज़त कि सितमगर
देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा
हवस-ए-गुल के तसव्वुर में भी खटका न रहा
नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का
लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
हम से खुल जाओ ब-वक़्त-ए-मय-परस्ती एक दिन
हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
लेता हूँ मकतब-ए-ग़म-ए-दिल में सबक़ हुनूज़
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका