देखना तक़रीर की लज़्ज़त कि जो उस ने कहा
मैं ने ये जाना कि गोया ये भी मेरे दिल में है
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं
जराहत तोहफ़ा अल्मास अर्मुग़ाँ दाग़-ए-जिगर हदिया
'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को
उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है 'ग़ालिब'
बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी
मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब
शाहिद-ए-हस्ती-ए-मुतलक़ की कमर है आलम
हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ