नहीं
मसअला ये नहीं
ये कोई दुख नहीं
सौ मसाइब
ये बे-सम्तियाँ
जिस्म और रूह की बे-कली
दर्द अपने
पराए
कई मुश्तरक
सोच की दोज़ख़ें
जंग एटम हों की
वग़ैरा वग़ैरा
कोई दुख नहीं
दुख तो ये है
कि मैं
साथ अपने
दुखों का जो सरमाया लाया था
वो ख़त्म होता नहीं
Mohsin Naqvi
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खोटे सिक्के
इक कहानी सुनोगी
बा-ख़बरी
नज़्म
होने को अब क्या देखिए क्या कुछ है और क्या कुछ नहीं
सुबुक मुझ को मोहब्बत में ये कज-उफ़्ताद करता है
हम आदम-ज़ाद जो हैं रोज़-ए-अव्वल से कमी है ये
वही मदार-ए-तमन्ना वही सितारा-ए-दिल
गए हैं देस को हम अपने छोड़ कर ही नहीं
हँसी में टाल रहे हो तुम उस के रोने को
सब है ज़ेर-ए-बहस जो ज़ाहिर है या पोशीदा है
तलाश फ़रेब-ए-मुतलक़ की