वो सब
भेड़िये हैं
मगर
जानते बूझते
ग़ोल-दर-ग़ोल भेड़ें
ख़ून अपना पिलाने उन्हें
जा रही हैं तो जाएँ
शब ही उन्हें रोकना है
ये मंज़र मुझे देखना है
ये कैसा मज़ा है
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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इक नश्तर-ए-निगाह है इस से ज़ियादा क्या
गए हैं देस को हम अपने छोड़ कर ही नहीं
तलाश फ़रेब-ए-मुतलक़ की
वही मदार-ए-तमन्ना वही सितारा-ए-दिल
गिराँ था मत्न मुश्किल और भी ताबीर पढ़ लेना
तलफ़ करेगी कब तक आरज़ू की जान आरज़ू
हँसी में टाल रहे हो तुम उस के रोने को
नज़्म
बा-ख़बरी
इस बे-ख़ुदी में रुख़्सत ख़ुद्दारी हो गई है
सच्चे मोती
मोहब्बत चाहती है जिस को अफ़्साना बना देना