बाज़ार में
नक़ली मोतियों की बोहतात है
तो क्या हुआ
तुम सच्चे मोतियों का
भाव न गिराओ
किसी के आँसुओं का
मज़ाक़ न उड़ाओ
ख़्वाह वो
ख़ैर जाने दो
कौन जाने
कब कोई
सच-मुच रो रहा हो
Anwar Masood
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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इक नश्तर-ए-निगाह है इस से ज़ियादा क्या
हम आदम-ज़ाद जो हैं रोज़-ए-अव्वल से कमी है ये
बा-ख़बरी
कमान सौंप के दुश्मन को अपने लश्कर की
सुबुक मुझ को मोहब्बत में ये कज-उफ़्ताद करता है
तलाश फ़रेब-ए-मुतलक़ की
मैं उस से नफ़रत (मोहब्बत) करता हूँ
रक्खा था जिसे दिल में वो अब है भी नहीं भी
वही मदार-ए-तमन्ना वही सितारा-ए-दिल
खोटे सिक्के
तलफ़ करेगी कब तक आरज़ू की जान आरज़ू
मसअला ये नहीं