हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(8453) Peoples Rate This
वो शाख़-ए-महताब कट चुकी है
मैं ने अक्सर ख़्वाब में देखा
अगरचे मैं इक चटान सा आदमी रहा हूँ
पलट के आ गई ख़ेमे की सम्त प्यास मिरी
मा'रका अब के हुआ भी तो फिर ऐसा होगा
ब-नाम-ए-ताक़त कोई इशारा नहीं चलेगा
एक नए लफ़्ज़ की तख़्लीक़
बहुत दिनों बा'द
अब के बारिश में तो ये कार-ए-ज़ियाँ होना ही था
अब वो तूफ़ाँ है न वो शोर हवाओं जैसा
कठिन तन्हाइयों से कौन खेला मैं अकेला
ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ