लोगो भला इस शहर में कैसे जिएँगे हम जहाँ
हो जुर्म तन्हा सोचना लेकिन सज़ा आवारगी
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(4560) Peoples Rate This
ज़बाँ रखता हूँ लेकिन चुप खड़ा हूँ
एक नए लफ़्ज़ की तख़्लीक़
मिरा होना न होना
गहरी ख़मोश झील के पानी को यूँ न छेड़
ख़ुमार-ए-मौसम-ए-ख़ुश्बू हद-ए-चमन में खुला
तुम्हें किस ने कहा था
हवा-ए-हिज्र में जो कुछ था अब के ख़ाक हुआ
हम जो पहुँचे सर-ए-मक़्तल तो ये मंज़र देखा
उजड़े हुए लोगों से गुरेज़ाँ न हुआ कर
जब हिज्र के शहर में धूप उतरी मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ
ग़ज़लों की धनक ओढ़ मिरे शोला-बदन तू
यूँ देखते रहना उसे अच्छा नहीं 'मोहसिन'