अख़्लाक़ से हो गई आरी दुनिया
सर-ता-ब-क़दम है कारोबारी दुनिया
मोहलिक है बहुत जौहर-ए-इंसाँ का ज़वाल
किस जाल में फँस गई हमारी दुनिया
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सोहबत-ए-शब का तलबगार न होगा कोई
ख़ाक-ए-अग़्यार से यारब मुझे पैवंद न कर
अपनी पर्वाज़ को मैं सम्त भी ख़ुद ही दूँगा
रंग-ए-वहशत कम नहीं ज़ख़्म-ए-तमाशा कम नहीं
जहाँ पे डूब गया था कभी सितारा मिरा
तदबीर-ए-शिफ़ा किसे बताए कोई
इक निगाह-ए-दिलबरी मेरी तरफ़
ऐ आबला-पा और भी रफ़्तार ज़रा तेज़
मौज-ए-गुल बर्ग-ए-हिना आब-ए-रवाँ कुछ भी नहीं
हवा-ए-तुंद के आगे धुआँ ठहरता नहीं
मिरे ख़याल से आगे तिरा निशाना पड़ा