बगूले उस के सर पर चीख़ते थे
मगर वो आदमी चुप ज़ात का था
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फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी
रक़्स
किसी मक़ाम से कोई ख़बर न आने की
इस तमाशे में तअस्सुर कोई लाने के लिए
तमाम रास्ता फूलों भरा है मेरे लिए
रही न यारो आख़िर सकत हवाओं में
चली डगर पर कभी न चलने वाला मैं
देखता था मैं पलट कर हर आन
सर-ब-सर एक चमकती हुई तलवार था मैं
न हरीफ़ाना मिरे सामने आ मैं क्या हूँ
पी चुके थे ज़हर-ए-ग़म ख़स्ता-जाँ पड़े थे हम चैन था
ज़रा सा इम्कान किस क़दर था