आज पनघट पर इस तरह थी भीड़
हर तरफ़ लड़कियों का रेला था
एक आती थी एक जाती थी
जैसे सावन में तीज मेला था
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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दिल की धड़कन के पयामात से डर जाते हैं
रुख़ उन का कहीं और नज़र और तरफ़ है
मौसमों का जवाब दे दीजे
फिर लाई है बरसात तिरी याद का मौसम
ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
बैठी सखियों के घेरे में दुल्हन
लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
और मोड़ ने कहा
ज़ुल्फ़ की शाम सुब्ह चेहरे की
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी