आँखों के गुलाबों को नज़्मों में छुपा लूँगा
ज़ुल्फ़ों के उजालों से ग़ज़लों को सजा लूँगा
होंटों से तराशूँगा अशआर की कलियों को
सोई हुई नींदों से क़ितआत चुरा लूँगा
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अजनबी
ख़्वाब
हम जो काफ़िर हैं सब की नज़रों में
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी
हैरान हूँ दो आँखों से क्या देख रहा हूँ
हो कर दुनिया से बेगाना
चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर
मौसमों का जवाब दे दीजे
हुस्न-ए-बे-पर्दा की यलग़ार लिए बैठे हैं
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
और मोड़ ने कहा
इस तरह दिल में शब-ए-तन्हाई