अभी से लुत्फ़-ओ-मुरव्वत का एहतिमाम न कर
नज़र को तीर लबों को अभी से जाम न कर
अभी न शाने से ढलका तू रेशमी आँचल
हसीन शाम है ऐसे में क़त्ल-ए-आम न कर
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
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ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
आज पनघट पर इस तरह थी भीड़
चुपके चुपके जहाँ बसा लेता
रुख़ उन का कहीं और नज़र और तरफ़ है
मेरे माज़ी से चली आती है हर रोज़ वो रात
हो कर दुनिया से बेगाना
जी भर के तुम्हें देख लूँ तस्कीन हो कुछ तो
गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल
फिर लाई है बरसात तिरी याद का मौसम
कह रही है रविश की ताबानी