ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
पहलू में तुम आओ कि अभी रात बहुत है
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हाल का लम्हा लम्हा छलनी है
वो सर-ए-शाम बाम पर आए
ज़ुल्फ़ की शाम सुब्ह चेहरे की
सेहन-ए-गुलशन में ढूँडती है कभी
दिल की धड़कन के पयामात से डर जाते हैं
लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
चुपके चुपके जहाँ बसा लेता
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
हैरान हूँ दो आँखों से क्या देख रहा हूँ
फ़नकार
अभी से लुत्फ़-ओ-मुरव्वत का एहतिमाम न कर