हाल का लम्हा लम्हा छलनी है
वक़्त को राह से हटाता हूँ
देखो शायद पलट के तुम मुझ को
लो मैं माज़ी में लौट जाता हूँ
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(757) Peoples Rate This
मौसमों का जवाब दे दीजे
हम जो काफ़िर हैं सब की नज़रों में
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी
अब उठाओ नक़ाब आँखों से
इस तरह दिल में शब-ए-तन्हाई
आज की रात
मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
दिन गुज़रता है उन की यादों में
गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
फ़नकार
हुस्न-ए-बे-पर्दा की यलग़ार लिए बैठे हैं