मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
साथ तेरे मिरी तस्वीर निकल आई है
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रुख़ उन का कहीं और नज़र और तरफ़ है
आज पनघट पर इस तरह थी भीड़
दिल की धड़कन के पयामात से डर जाते हैं
मौसमों का जवाब दे दीजे
फिर लाई है बरसात तिरी याद का मौसम
फ़नकार
इस तरह दिल में शब-ए-तन्हाई
गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल
दिन गुज़रता है उन की यादों में
जी भर के तुम्हें देख लूँ तस्कीन हो कुछ तो
सेहन-ए-गुलशन में ढूँडती है कभी