दिन गुज़रता है उन की यादों में
रौशन अश्कों से रात करता हूँ
मैं तो कहता नहीं हूँ शेर कभी
दिल के ज़ख़्मों से बात करता हूँ
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ज़िंदगी तू ने कहानी दे दी
हम जो काफ़िर हैं सब की नज़रों में
आज की रात
रुख़ उन का कहीं और नज़र और तरफ़ है
चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर
जी भर के तुम्हें देख लूँ तस्कीन हो कुछ तो
फिर लाई है बरसात तिरी याद का मौसम
अजनबी
अभी से लुत्फ़-ओ-मुरव्वत का एहतिमाम न कर
हैरान हूँ दो आँखों से क्या देख रहा हूँ
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है