दिल में ले कर हम आस फिरते रहे
हम ख़ुशी में उदास फिरते रहे
तू रही दूर दूर हम से मगर
हम तिरे आस-पास फिरते रहे
Habib Jalib
Wasi Shah
Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
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ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
ज़ुल्फ़ की शाम सुब्ह चेहरे की
वो सर-ए-शाम बाम पर आए
हम जो काफ़िर हैं सब की नज़रों में
जी भर के तुम्हें देख लूँ तस्कीन हो कुछ तो
और मोड़ ने कहा
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
हुस्न-ए-बे-पर्दा की यलग़ार लिए बैठे हैं
कह रही है रविश की ताबानी
अब उठाओ नक़ाब आँखों से
अजनबी
इस तरह दिल में शब-ए-तन्हाई