कह रही है रविश की ताबानी
देखे-भाले इधर से गुज़रे हैं
आ सबा हम भी इस तरफ़ से चलें
हुस्न वाले इधर से गुज़रे हैं
Habib Jalib
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हाल का लम्हा लम्हा छलनी है
हम जो काफ़िर हैं सब की नज़रों में
तेरी याद मेरी भूल
ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
हो कर दुनिया से बेगाना
दिन गुज़रता है उन की यादों में
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी
सेहन-ए-गुलशन में ढूँडती है कभी
वो सर-ए-शाम बाम पर आए
मेरे माज़ी से चली आती है हर रोज़ वो रात
चुपके चुपके जहाँ बसा लेता
अब उठाओ नक़ाब आँखों से