वो सर-ए-शाम बाम पर आए
मुँह को पूरब में इस तरह मोड़ा
एक सुहागन ने देख कर उन को
सत-नरायन के बर्त को तोड़ा
Rahat Indori
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दिल में ले कर हम आस फिरते रहे
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
अब उठाओ नक़ाब आँखों से
मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
मौसमों का जवाब दे दीजे
अभी से लुत्फ़-ओ-मुरव्वत का एहतिमाम न कर
गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल
चुपके चुपके जहाँ बसा लेता
लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
दिन गुज़रता है उन की यादों में
अजनबी
कह रही है रविश की ताबानी