जब भी खिलता है सर-ए-शाख़ कोई ताज़ा गुलाब
तुम उसे तोड़ के जूड़े में सजा लेती हो
जाने क्या बात है तुम अपने सिवा दुनिया में
हर हसीं चीज़ को झुंजला के मिटा देती हो
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मौसमों का जवाब दे दीजे
मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
बैठी सखियों के घेरे में दुल्हन
गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल
ज़िंदगी तू ने कहानी दे दी
लोग करते हैं ख़्वाब की बातें
चुपके चुपके जहाँ बसा लेता
तेरी याद मेरी भूल
सेहन-ए-गुलशन में ढूँडती है कभी
तन्हाई
मुझ को तो आप मिरे ख़्वाब में मिल जाएँगे