मुझ को तो आप मिरे ख़्वाब में मिल जाएँगे
नींद अक्सर मिरी पलकों से गिला करती है
आप भी देखा करें अपने तसव्वुर में मुझे
ख़्वाब से ख़्वाब की ताबीर मिला करती है
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कह रही है रविश की ताबानी
ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी
आज पनघट पर इस तरह थी भीड़
फिर लाई है बरसात तिरी याद का मौसम
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
ज़िंदगी तू ने कहानी दे दी
मौसमों का जवाब दे दीजे
मेरे माज़ी से चली आती है हर रोज़ वो रात
अब उठाओ नक़ाब आँखों से
चुपके चुपके जहाँ बसा लेता
जी भर के तुम्हें देख लूँ तस्कीन हो कुछ तो