जी भर के तुम्हें देख लूँ तस्कीन हो कुछ तो
मत शम्अ बुझाओ कि अभी रात बहुत है
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मौसमों का जवाब दे दीजे
फूल बिखराती हर इक मौज-ए-हवा आती है
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
हैरान हूँ दो आँखों से क्या देख रहा हूँ
ख़्वाबों से न जाओ कि अभी रात बहुत है
तन्हाई
आज की रात
गिर रहे हैं बदन पे शाख़ से फूल
चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर
और मोड़ ने कहा
दिन गुज़रता है उन की यादों में
जब भी खिलता है सर-ए-शाख़ कोई ताज़ा गुलाब