ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी
इंसान को इंसाँ से जुदा देख रहा हूँ
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वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
हुस्न-ए-बे-पर्दा की यलग़ार लिए बैठे हैं
मेरे माज़ी से चली आती है हर रोज़ वो रात
चुपके चुपके जहाँ बसा लेता
दूर घाटी से सर उठा के शफ़क़
तन्हाई
दिल में ले कर हम आस फिरते रहे
चाँदनी रात में शानों से ढलकती चादर
अभी से लुत्फ़-ओ-मुरव्वत का एहतिमाम न कर
तेरी याद मेरी भूल
फिर लाई है बरसात तिरी याद का मौसम
कह रही है रविश की ताबानी