हो कर दुनिया से बेगाना
देख रहा था शहद के छत्ते
आग लगाने आ पहुँचे हैं
तेरी याद के सूखे पत्ते
Habib Jalib
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Jaun Eliya
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दिल में ले कर हम आस फिरते रहे
वक़्त बढ़ता रहा मौसम मौसम
आँखों के गुलाबों को नज़्मों में छुपा लूँगा
हाल का लम्हा लम्हा छलनी है
इस तरह दिल में शब-ए-तन्हाई
जब भी खिलता है सर-ए-शाख़ कोई ताज़ा गुलाब
मुद्दतों बाद उठाए थे पुराने काग़ज़
ये कैसी सियासत है मिरे मुल्क पे हावी
कह रही है रविश की ताबानी
तन्हाई
दिल की धड़कन के पयामात से डर जाते हैं
और मोड़ ने कहा